Wednesday, April 4, 2012

ठिकाने रौशनी वाले हमेशा खोजता रहता|
तुम्हारी नींद खुल जाये प्रबोधन सोचता रहता||

हमारी लेखनी लिखती जहाँ की उस कहानी को,
जिसे भूखा जिया करता कमेरा बोलता रहता|

भलाई के इरादों में छिपी शैतानियत जो है ,
उसे बेख़ौफ़ होकर कवि निरंतर टोकता रहता|

प्रदूषण हर तरह का फैलता ही जा रहे देखो,
इसी कारण नये पौधे जमीं पर रोपता रहता|

किसे मालूम हैं उनमें कभी इंसानियत जागे,
ठगी में लिप्त जो हैं वे ह्रदय झकझोरता रहता|

यहाँ विध्वंस करने के विविध संचार तंत्रों को,
मिटाने हेतु साहित्यक स्वरों को जोड़ता रहता|

जरा -सी शक्ति पा जायें थके-हारे जमाने में, 
इसी कारण 'तुका' अविरल पवन-सा डोलता रहता|

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