लोकतांत्रिक दौर है अब फेकिये शमसीर को|
ध्वस्त करना है जरूरी द्वेष की प्राचीर को ||
शक्ति से भरपूर दोनों हाथ हैं श्रीमान जी,
आज ही चाहें बदल दें विश्व की तस्वीर को|
...
लोकशाही यह व्यवस्था लोकमंगल के लिए,
न्यायप्रिय सहकार से हरते चलें परपीर को|
आइये कुछ हल निकालें बैठकर चर्चा करें,
न्याय से ले लीजिये या दीजिये कश्मीर को|
साठ वर्षों तक सहस्रों माफ़ की हैं गलतियाँ,
जानता संसार है धारण किये हम धीर को |
रूढ़ियों से क्यों बंधें जब मुक्ति है अभिव्यक्ति की,
मुक्त रहना सीखिए प्रिय! तोड़िये जंजीर को |
वक्त कहता है 'तुका'इस दौर में प्रत्येक से,
आप अपने हाथ से अपनी रचें तकदीर को|
No comments:
Post a Comment