लिखे गीत परमार्थ ग़ज़लें कहीं हैं|
मुहब्बत लुटायी व्यथायें सहीं हैं ||
नहीं हैं अलौकिक कहीं भी ठिकाने,
सुलभ ज़िन्दगी हेतु खुशियाँ यहीं हैं|
कहीं और जाना नहीं आदमी को,
यहीं प्यार की बारिशें हो रहीं हैं |
उन्हें बाँट सकता न कोई कहीं भी,
जिन्होंने सदाचार राहें गहीं हैं |
उन्हें शान्ति सुख-चैन कैसे मिलेगा,
जिन्होंने कि नोटों की गड्डी तहीं हैं|
कुकर्मों सहित स्याह धन के तुम्हारी,
लिखीं जा रहीं सुर्ख खाता वहीँ हैं|
'तुका' ज़िन्दगी मुश्किलों की कहानी,
बताओं कहाँ वेदनायें नहीं हैं ?
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