Friday, April 20, 2012


बोझ भारी बहुत कंध कमजोर हैं,
राह रोके खड़े क्रूर सह्जोर हैं,
मूर्तियाँ मंदिरों की संभाले रहो-
लूटने को शहर में घुसे चोर हैं|

गौर से देखिये हाल बेहाल हैं,
भूख से हो रहे लोग कंकाल हैं,
लोकशाही करे तो करे क्या भला-
हम सभी ने चुने धूर्त वाचाल हैं|

कुछ हमें कुछ तुम्हें पास आना पड़ा,
ज़िन्दगी का मधुर गीत गाना पड़ा,
चाहता था पवन वह अकेला बहे-
पर उसे गंध को संग लाना पड़ा|

फूल हैं मुस्काएंगे मुरझाएंगे भी,
स्नेह के उपहार से हर्षाएंगे भी,
ज़िन्दगी के बाद गलकर और पिसकर
इत्र बनकर विश्व को महकाएंगे भी|

अज्ञान के अभियान को विज्ञान बना दे,
जो मूर्ख को सदाशयी विद्वान बना दे|
इतनी सदैव प्रार्थना गुणवान से 'तुका'-
मुझको उसी समाज का इंसान बना दे||

सुमन जैसी सुगंधों से महकते जो रहे प्यारे!
तिमिर में रौशनी जैसा चमकते जो रहे प्यारे!
उन्होंने विश्व को बदलाव का चिंतन दिया ऐसा-
सफल अब हो रहे वे भी धधकते जो रहे प्यारे!

No comments:

Post a Comment