Saturday, December 22, 2012

शायद नयी नजीर से तकलीफ़ हो रही,
बढ़ती हुई लकीर से तकलीफ़ हो रही |

शोषित गरीब वर्ग को दो रोटियाँ मिलीं,
कितनी यहाँ अमीर को तकलीफ़ हो रही|

जब से समाज में दबी आवाज़ उठ रही,
तब से सुना बजीर को तकलीफ़ हो रही|

पर पीर से जिन्हें नहीं किंचत लगाव है,
उनको अधीर पीर से तकलीफ़ हो रही |

जो लोग चाहते ठगी जड़ता बनी रहे,
उनको तुका कबीर से तकलीफ़ हो रही|  

Wednesday, December 19, 2012


कुछ लोग मुहब्बत के घर में नफ़रत की बातें करते हैं,
कुछ नफ़रत सहते हँसकर के चाहत की बातें करते हैं|

खल नायक तो व्यवहार हीन आदत की बातें करते हैं, 
जिसकी न इबारत पढ़ सकते उस खत की बातें करते हैं|

इस दुनिया का दस्तूर यही थोड़ा-सा अर्थ चढ़ा करके,
हर भाँति अनधिकृत पाने को मिन्नत की बातें करते हैं|

उन लोगो को सम्मान लाभ यूँ ही मिलता रहता है जो,
सत्ता की चौखट छूने को कसरत की बाते करते हैं|

ये दौर न जाने कैसा है किस ओर और अब भाग रहा, 
जो लूट रहे पर इज्जत वे इज्जत की बातें करते हैं|

उनके लेखन को मान ‘तुका’ किस भाँति दिया जा सकता जो,
साहित्यकार बनते हैं पर दौलत की बातें करते हैं|

Wednesday, December 12, 2012

तन की सुंदरता अच्छी है,मन भी सुन्दर कर लें|
अगर हो सके स्नेह-सिंधु में,गहरा और उतर लें||

कभी-कभी नफ़रत की वाणी, अधरों पर आ जाती,
चमक-दमक दौलत की प्रायः,नैनों पर छा जाती|
निष्पृह हो परमार्थ स्वरों से, अपने अंतर भर लें|
अगर हो सके स्नेह-सिंधु में,गहरा और उतर लें||

बनी बनायी राहें जग में,जन अक्सर अपनाते,

कवि गण तो जीवन मंजिल के, मार्ग नवीन बनाते|
जीवन के उलझे प्रश्नों का, स्वतः खोज उत्तर लें|
अगर हो सके स्नेह-सिंधु में,गहरा और उतर लें|| 

बिना प्रयोजन समय बिताना,कवि का धर्म नहीं है,
भलीभाँति यह सत्य समझ लें, सच्चा स्वर्ग यहीं है | 
अपने सुख की करें न चिंता,औरों के दुख हर लें |
अगर हो सके स्नेह-सिंधु में,गहरा और उतर लें||

यहाँ दूसरों के हित जिसने, मर मिटना जाना है,
उसको युग ने मुक्त भाव से, संतों- सा माना है|
उपेक्षितों की गलियों में भी,थोड़ा-बहुत विचर लें|
अगर हो सके स्नेह-सिंधु में,गहरा और उतर लें||

Saturday, November 24, 2012

एक प्यास हेतु प्यासा गीत :-

आँखों की प्यास,कानों की प्यास|
तृप्त हो सकी न अधरों की प्यास||
प्यास तो आखिर प्यास है प्यास ...

जीवन भरा आँगन मिला,पावन भवन सुहावन मिला,
गोदी लिए माँ ने कहा,लोचन लुभावन लालन मिला| 
रोने की प्यास, सोने की प्यास,
होती थी तब न खोने की प्यास|
आँखों की प्यास,..

ज्योंही हुए सीधे खड़े,रह न सके वहीँ गिर पड़े,
ओंओं सुना त्योंही सभी,गुस्से भरे कुछ-कुछ लड़े| 
दादा की प्यास,दादी की प्यास,
नाना जी और नानी की प्यास|
आँखों की प्यास,...

चलने लगे ढलने लगे,सजने लगे नचने लगे,
आने लगे जाने लगे घर बाहर निकलने लगे|
फूलों की प्यास,झूलों की प्यास,
रहते थी खूब झूलों की प्यास|
आँखों की प्यास,...

इसने कहा उसने कहा,इनको सहा उनको सहा,
चलता रहा गलता रहा,नित्य प्रपात समान बहा| 
खेलों की प्यास,मेलों की प्यास ,
फिर विद्द्या हेतु,जेलों की प्यास|
आँखों की प्यास,...

सपने दिखे नपने दिखे,अपनों में न अपने दिखे,
जो भी दिखे खपने दिखे,सच के हेतु ढपने दिखे| 
जीने की प्यास सीने की प्यास,
प्यासी की आज प्यासी है प्यास|
आँखों की प्यास,...

इनके लिए उनके लिए,हम जी रहे उपवन के लिए,
कविता यही कहती सदा,जी भर जिओ जन-मन के लिए|
यादों की प्यास वादों की प्यास,
कैसे हो पूर्ण म्यादों की प्यास |
आँखों की प्यास,कानों की प्यास,
तृप्त हो सकी न अधरों की प्यास||
प्यास तो आखिर प्यास है प्यास...

Friday, November 23, 2012

मंच का साहित्य से अब क्या रहा नाता,
गीत पढ़िए वे जिन्हें सुन खुश रहे दाता|

कवि लिफाफे का बजन पहचानता,
वह नियति आयोजकों की जानता,
इसलिए पक्षी- विपक्षी राजनेता का-
वह सुरक्षित ख़ूब रखना चाहता हाता|

कल यहाँ से वह वहाँ जब जाएगा,
तब वहाँ तारीफ़ उनकी गाएगा ,
श्रेष्ठ कवि की मान्यता का पात्र वह सच्चा-
जो कि उनके वोट का बढ़वा सके खाता|

जन हितैषी संगठन जो तोड़ दे,
सब ठगों को जेल से जो छोड़ दे,
गाँव-नगरों में बहा दे सोम की धारा-
नागरिक उसको कहेंगे क्यों नहीं ज्ञाता?

मत जगाओ चित्त वह जो सुप्त है,
यह कथा जन चेतना की गुप्त है,
देश में युग बोध हो जब चेतना वर्षा-
तानिए तब रूढ़ि-जड़ता का तुरत छाता|

Thursday, November 22, 2012



सत-असत्य का ध्यान नहीं है,शब्दों का शिव ज्ञान नहीं है|
वह कैसे सुन्दर लिख सकता,जिसको युग पहचान नहीं है?

कहाँ लगानी होती यति है,कहाँ बढ़ानी होती गति है?
किस प्रकार बढ़ती पद-मैत्री,लय सरसाती सदसम्मति है|
वह इंसानी भाव भरे करे क्या,जिसमें उर इन्सान नहीं है?
वह कैसे सुन्दर लिख सकता,जिसको युग पहचान नहीं है?

जिसने सच को जिया नहीं है,परहित विष को पिया नहीं है|
जिसने अपने कहे हुए को,जीवन भर तक किया नहीं है ||
वह कैसा अन्वेषक होगा, जिसको प्रिय विज्ञान नहीं है| 
वह कैसे सुन्दर लिख सकता,जिसको युग पहचान नहीं है? 

कहने को वह महामना है,उज्ज्वल पहनावा पहना है|
पर उसको अनुकूल धार के,साथ-साथ अविरल बहना है||
ऐसे लेखन से हो सकता,सफल न्याय अभियान नहीं है| 
वह कैसे सुन्दर लिख सकता,जिसको युग पहचान नहीं है?

Friday, November 16, 2012

शिक्षा ने जीवन -उन्नति के,मार्ग किये आसान|
हटाये बड़े-बड़े व्यवधान||
हटाये बड़े-बड़े व्यवधान||| 

मान लिया यह दौर अर्थ का,शासन दिखता है समर्थ का,
लेकिन इन दोनों से उपजा,विज्ञापनी विचार व्यर्थ का ||
विद्द्या बल से हो सकता है,हम सबका का उत्थान|
शिक्षा ने जीवन -उन्नति के,मार्ग किये आसान|

हटाये बड़े-बड़े व्यवधान||

खुलती है जब आँख ज्ञान की,तब दिखती बांछा विधान की,
नियम -उपनियम समझे जाते,दशा न रहती खींच -तान की|
एक साथ परिचर्चा करते,मिल किसान विद्वान|
शिक्षा ने जीवन -उन्नति के,मार्ग किये आसान|
हटाये बड़े-बड़े व्यवधान|| 

लोकतंत्र का शिव विचार है,करना गलती का सुधार है,
वैज्ञानिक विधियों से होता, सड़े -गले का परिष्कार है|
नवशोधों से हरियाली में, बदल गये वीरान|
शिक्षा ने जीवन -उन्नति के,मार्ग किये आसान|
हटाये बड़े-बड़े व्यवधान||