Friday, August 23, 2013

विद्वानों को किया किनारे

अपने आप विचार कीजिये, क्यों न बढ़ेंगे दंगे?
विद्वानों को किया किनारे, पुजने लगे लफंगे||

अज्ञानी जी ज्ञानी जैसी, अंकित किये निशानी,
जहाँ चाहते वहाँ सुनाते, ठग्गू छद्म कहानी|
तंत्र- मन्त्र से हम करते हैं, बीमारों को चंगे|
विद्वानों को किया किनारे, पुजने लगे लफंगे||

यद्दपि संसद भवन राष्ट्र का, महान्याय मंदिर है,
जिसके हर आसान पर बैठा, संसदीय इन्दर है|
कमजोरों के हक पर फिरभी, लगते कई अडंगे|
विद्वानों को किया किनारे, पुजने लगे लफंगे|| 

सदाचार के सूत्र सिखाते, करते हेरा- फेरी,
भ्रष्टाचार छिपाये मौसी, अनाचार की चेरी|
लोकतंत्र को दूषित करते, बलशाली बेढंगे| 
विद्वानों को किया किनारे, पुजने लगे लफंगे||

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