Friday, August 2, 2013

चिंतन जल

सुना गया है यहाँ यही तो, बड़े लोग वे होते हैं?
करें नहीं जो सत्कृत्यों को, पड़े चैन से सोते हैं|

सहजोरों के घर वैभवता, कमजोरों को निर्धनता,
राज्य धर्म के दो पाटों में, पिसती रहती है जनता|
इन्हीं कुचालों ने मानव तो, ढोरों जैसे जोते हैं|
सुना गया है यहाँ यही तो, बड़े लोग वे होते हैं?

शोषण के पोषण की गाथा, सदियों छली सुनाये हैं,
बदले में शासन -सत्ता से, दान सुरक्षा पाये हैं|
परजीवी के भारी बोझे, सदा कमेरे ढोते हैं|
सुना गया है यहाँ यही तो, बड़े लोग वे होते हैं?

दुरभिसंधियों के प्रयास को, परमेश्वर से जोड़ा है,
ठगुओं ने भोले-भालों को, नहीं कहीं का छोड़ा है|
पुनर्जन्म के भव सागर में, बंधक खाते गोते हैं|
सुना गया है यहाँ यही तो, बड़े लोग वे होते हैं?

तुम्हें तथागत ने समझाया, फिर क्यों समझ नहीं आता,
परमात्मा आत्मा का कोई, नहीं सत्य से है नाता|
दुख सुख नहीं समझते वे जो, निज विवेक को खोते है| 
सुना गया है यहाँ यही तो, बड़े लोग वे होते हैं?

सदा निवारण हर कारण का, निश्चय जग में होता है ,
वही बुद्ध है जो विपत्ति में, कभी न नैन भिगोता है|
मिलते हैं फल वही कि जिनके, बीज आदमी बोते है|
सुना गया है यहाँ यही तो, बड़े लोग वे होते हैं?

यही उचित है सभी सभी के, सुख-दुख को मिलकर बाँटें,
मानवकृत भेदों को त्यागें, स्नेह सहित जीवन काटें|
श्रेष्ठ संत तो भ्रम की काई, चिंतन जल से धोते हैं|
सुना गया है यहाँ यही तो, बड़े लोग वे होते हैं?

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