Friday, August 9, 2013

नगाड़े लोकशाही के

सुनाई दे रहा सुनिये यही तो शोर है,
पसारा गुंडई ने खौफ़ चारों ओर है|

अचानक आ गया बदलाव ये माहौल में,
भयाभय साँप से दिखने लगा अब मोर है|

हवा में चैन की खुशबू अभी फैली नहीं,
हुआ क्या बाकई सुख शान्ति वर्धक भोर है?

उसी को राजनैतिक क्षेत्र में अवसर यहाँ ,
हुआ जो हाथ-पैरों अर्थ से सहजोर है|

नगाड़े लोकशाही के बहुत से गूँजते,
कहो फिर क्यों गरीबों को बनाया ढोर है|

किसी ने भी उसे सम्मान से देखा नहीं,
'तुका' जो आचरण से ही रहा गमखोर है|

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