Friday, May 26, 2017

सामन्ती आधार बढ़ा है

**************एक गीत ***************
सामन्ती आधार बढ़ा है, पिटने लगे गरीब|
अमीरी दिखलाये तहजीब||
अमीरी दिखलाये तहजीब|||
केवल बहकाबे की बातें, आश्वासन पोषक बरसातें|
चाटुकार मदहोश हुये जो, करें निहत्थों ऊपर घातें||
ठग्गू दादा सिखलाते हैं, ठगने की तरकीब|
अमीरी दिखलाये तहजीब||
अमीरी दिखलाये तहजीब|||
धार्मिक आडम्बर फैलाना, छल से दंगों में उलझाना|
अभिनय रूपी हथियारों से, भ्रामक वातावरण बनाना||
हस्त लकीरों से बनते हैं, उज्ज्वल नहीं नसीब|
अमीरी दिखलाये तहजीब||
अमीरी दिखलाये तहजीब|||
बड़ी गूढ़ शासन की भाषा, स्वार्थसिद्धि प्रेरक अभिलाषा|
गिरगिट -सा जो रंग बनाये, वही प्रशासन की परिभाषा||
सज्जन संत स्वार्थ सत्ता के, रहते नहीं करीब|
अमीरी दिखलाये तहजीब||
अमीरी दिखलाये तहजीब|||
अपनों में भी अपने होते, आम लोग बस बोझे ढोते|
खास माल खाते- पीते हैं, नारे बाज अनवरत रोते||
झूठों को मिलती है सत्ता, सच को शूल सलीब|
अमीरी दिखलाये तहजीब||
अमीरी दिखलाये तहजीब|||

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