Wednesday, October 14, 2020

काव्य प्रयोजन

 

काव्य प्रयोजन
नाम कमाया दाम कमाये, मगर न शिवम् विचार।
कि ऐसी कविताई बेकार।।
कि ऐसी कविताई बेकार।।।
काव्य प्रयोजन समझ न पाये,
मदिरा पिये झूमकर गाये,
दीन दुखी लाचार जनों को-
ठगुआ चिंतन क्या सिखलाये?
आकर्षण के लिए परोसा, नारी का शृंगार।
कि ऐसी कविताई बेकार।।
कि ऐसी कविताई बेकार।।।
लोकतंत्र का अर्थ न जाना,
सिर्फ़ पढ़ा सरकारी गाना,
गाँव -गली के अंधियारे में-
भूल गए वो आना-जाना।
युगप्रबोध के हेतु अनय पर, कर न सके प्रहार।
कि ऐसी कविताई बेकार।।
कि ऐसी कविताई बेकार।।।
जाति-धर्म के रंग चढ़ाये,
भ्रामक झूठे पाठ पढ़ाये,
चौड़े-चौड़े फ़्रेमों में तो-
विज्ञापन के चित्र मढ़ाये।
पुरस्कार के लिए शीश से, पगड़ी दिए उतार।
कि ऐसी कविताई बेकार।।
कि ऐसी कविताई बेकार।।।

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