Tuesday, October 13, 2020

काव्य प्रयोजन

काव्य प्रयोजन


नाम कमाया दाम कमाये, मगर न शिवम् विचार।

कि ऐसी कविताई बेकार।।

कि ऐसी कविताई बेकार।।।


काव्य प्रयोजन समझ न पाये,

मदिरा पिये झूमकर गाये,

दीन दुखी लाचार जनों को-

ठगुआ चिंतन क्या सिखलाये?

आकर्षण के लिए परोसा, नारी का शृंगार।

कि ऐसी कविताई बेकार।।

कि ऐसी कविताई बेकार।।।


लोकतंत्र का अर्थ न जाना,

सिर्फ़ पढ़ा सरकारी गाना,

गाँव -गली के अंधियारे में-

भूल गए वो आना-जाना।

युगप्रबोध के हेतु अनय पर, कर न सके प्रहार।

कि ऐसी कविताई बेकार।।

कि ऐसी कविताई बेकार।।।


जाति-धर्म के रंग चढ़ाये,

भ्रामक झूठे पाठ पढ़ाये,

चौड़े-चौड़े फ़्रेमों में तो-

विज्ञापन के चित्र मढ़ाये।

पुरस्कार के लिए शीश से, पगड़ी दिए उतार।

कि ऐसी कविताई बेकार।।

कि ऐसी कविताई बेकार।।।

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