Sunday, November 7, 2010

Ashiyane prem ke

आशियाने प्रेम के सबको मिले नहीं
 साठ वर्षों बाद भी गुलशन  खिले नहीं
यत्न तो लाखों हुए लेकिन अभी तुका -
टूट पाये द्वेष-नफरत के किले नहीं

 अर्थ की आंधियां तेज चलने लगीं
भूख से अर्थियाँ कुछ निकलने लगीं
सृष्टि का इस कदर तेज दोहन हुआ -
वक्त के पूर्व ऋतुएं बदलने लगीं

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