गीत बेखौफ गाता रहूँगा
फ़र्ज़ कवि का निभाता रहूँगा
कल न शायद रहूँ इस जहाँ में
पर तुम्हें याद आता रहूँगा
चेतना शून्य जो हो गए हैं
उन सभी को जगाता रहूँगा
भोग जिसका सभी कर सकें वो
फ़स्ल उन्नत उगाता रहूँगा
जी सके जो तुका सा उसे ही
संत जैसा बताता रहूँगा
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