Saturday, January 28, 2012

दागियों को जब मिलेंगे राजनैतिक ठौर|
तो चलेगा राष्ट्र धन को लूटने का दौर||

गाँव गलियों का जिसे अनुभव नहीं होता,
जानिये है वह किसी का पालतू तोता ,
... बोलने पर बोलता जो चाहता स्वामी-
अन्यथा वह बंद पिन्जरे में पड़ा सोता |
वक्त ऊपर जो न करता वक्त रहते गौर|
तो चलेगा राष्ट्र धन को लूटने का दौर||

सोचिये सत्ता किसी की कब रही चेरी ,
लाजिमी होती वहाँ हेरा तथा फेरी,
देख भी उसकी तरफ वे दृग नहीं सकते-
एक भी पल की करेंगे जो कदम देरी|
छीन लेंगे वे गरीबों के मुखों के कौर |
तो चलेगा राष्ट्र धन को लूटने का दौर||


आप सब मतदान करिये खोलकर आँखें,
काटिये अपनी नहीं अब तो स्वतः पाँखें,
खाद-पानी दे नहीं जिसको प्रकृति माली
फूल फल लाती नहीं उस वृक्ष की शाखें|
लोक रक्षक हो न सकते उन सभी के तौर|
तो चलेगा राष्ट्र धन को लूटने का दौर||

साथ में अपने रहे जो साधुओं जैसे ,
राजनैतिक शक्ति से वे हो गये कैसे,
मांगिये उनके कृतों का आप कुल ब्यौरा-
अन्यथा कहिये नहीं ऐसा तथा वैसा |
और के धन की बदौलत हो गये वे और ||
तो चलेगा राष्ट्र धन को लूटने का दौर||
 
 

No comments:

Post a Comment