Wednesday, May 6, 2015

यह कैसी आवाज़..


यह कैसी आवाज़..
निर्वाचन में करें तमाशा,
काले-काले नोट,
विज्ञापन की चकाचौंध में,
लुटें करोड़ों वोट,
लोकतंत्र ने पहना डाला,
एक व्यक्ति को ताज|
यह कैसी आवाज़..
सपनों को ऐसे बेचा ज्यों,
स्वर्गलोक की सैर, 
बातों से यूँ लगता जैसे,
कोई शत्रु न गैर,
अंधभक्ति के आकर्षण को,
रंच न आये लाज| 
यह कैसी आवाज़..
कल तक तो थी उत्तम खेती,
आज बना व्यापार,
गाँव गरीब किसान सहस्रों,
सहें भूख की मार|
छलियों बलियों ऊपर सत्ता,
ख़ूब दिखाये नाज़|
यह कैसी आवाज़..

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