Sunday, May 10, 2015

वंचित हैं इन्सान


वंचित हैं इन्सान मूल अधिकारों से,
चलती है सरकार खोखले नारों से|
बजते हैं दिन-रात ढोल इमदादों के,
जनता तो लाचार बज्र अधिभारों से|
विज्ञापन का दौर शीर्ष पर व्यापारी, 
राहत की उम्मीद नहीं सरकारों से |
अस्त्रशस्त्र बेकार लोकशाही कहती,
वोटशक्ति की मार तीव्र हथियारों से|
लाभ-हानि से दूर तुका ने धरती के,
सींचे जीवन खेत बाग रसधारों से|

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