Tuesday, May 19, 2015

तानसेन गा रहे

"एक गीत:-
नवगीत मीत नवरीतों से,
कुछ तानसेन गा रहे यहाँ|
शुभ तोरण द्वार लगे सजने,
महिमा के साज लगे बजने,
कुछ भक्त श्रेष्ठ संगत करके-
जय हो जय प्रभो लगे भजने|
इस लोकतन्त्र का उड़ा रहे,
ऐसा मज़ाक, ऐसा मज़ाक-
ज्यों हरिश्चन्द्र आ रहे यहाँ|
कुछ तानसेन गा रहे यहाँ||
अब रिक्त न कोई थाली है,
इतनी अजीब खुशहाली है,
गाँवों-नगरों की गली-गली-
काशी, मथुरा, वैशाली है|
युगदाता को प्रसन्न करने-
गणमान्य कतारें लगा-लगा-
सुमनों को बरसा रहे यहाँ|
कुछ तानसेन गा रहे यहाँ||
दिग्विजय पूर्णता कर डाली,
वह जीत चुके अन्तिम पाली,
ऐसा जनसेवक दिखा नहीं-
जिसने न बजायी हो ताली||
आकर्षण से आकर्षित हो,
दुनिया के कोने- कोने से-
शरणार्थी फिर आ रहे यहाँ|
कुछ तानसेन गा रहे यहाँ||
अति आनंदित हैं व्यापारी,
सब मौज मनायें अधिकारी,
उपलब्ध राजनेताओं को-
सस्ती सुविधायें सरकारी|
यदि ज्ञात आपको बतलाओ,
अब कौन लोग मजलूमों पर-
दारिद्र जुल्म ढा रहे यहाँ?
कुछ तानसेन गा रहे यहाँ||"

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