सथियो! ऐसा बनाना है नया सन्सार|
घायलों का पीड़तों का जो करे उपचार||
जानता हूँ आधुनिकता हो गई हावी,
कीच से बाहर निकालें ज़िन्दगी भावी|
छीन पाये अब न कोई सर्जना अधिकार|
घायलों का पीड़तों का जो करे उपचार||
आदमी की भूख को भोजन मिले पानी,
राजनैतिक क्षेत्र में हो बन्द शैतानी|
शील सिंचित चाहिये इंसान को व्यवहार|
घायलों का पीड़तों का जो करे उपचार||
आप में मुझमें न उसमें भेद है कोई,
सत्य से वो दूर मानों आँख जो सोई|
मानिये है लाजिमी वो प्यार का आधार|
घायलों का पीड़तों का जो करे उपचार||
क्यों अलौकिक शक्तियों के बाग को सींचे,
हाथ क्यों परमार्थ से पीछे तुका खींचे|
भूमि ऊपर हो सके वो स्वर्ग भी साकार|
घायलों का पीड़तों का जो करे उपचार||
न्याय से परिपूर्ण जो भी साधना होगी,
स्नेह से स्वीकार वह सद्भावना होगी|
एक होनी चाहिये वो विश्व की सरकार|
घायलों का पीड़तों का जो करे उपचार||
घायलों का पीड़तों का जो करे उपचार||
जानता हूँ आधुनिकता हो गई हावी,
कीच से बाहर निकालें ज़िन्दगी भावी|
छीन पाये अब न कोई सर्जना अधिकार|
घायलों का पीड़तों का जो करे उपचार||
आदमी की भूख को भोजन मिले पानी,
राजनैतिक क्षेत्र में हो बन्द शैतानी|
शील सिंचित चाहिये इंसान को व्यवहार|
घायलों का पीड़तों का जो करे उपचार||
आप में मुझमें न उसमें भेद है कोई,
सत्य से वो दूर मानों आँख जो सोई|
मानिये है लाजिमी वो प्यार का आधार|
घायलों का पीड़तों का जो करे उपचार||
क्यों अलौकिक शक्तियों के बाग को सींचे,
हाथ क्यों परमार्थ से पीछे तुका खींचे|
भूमि ऊपर हो सके वो स्वर्ग भी साकार|
घायलों का पीड़तों का जो करे उपचार||
न्याय से परिपूर्ण जो भी साधना होगी,
स्नेह से स्वीकार वह सद्भावना होगी|
एक होनी चाहिये वो विश्व की सरकार|
घायलों का पीड़तों का जो करे उपचार||
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