Friday, July 1, 2011

काव्य संवेदनाएं

   लोकहित  का   अलग  एक  संसार  है |
   जो  चलाता  नहीं   स्वार्थ  तलवार  है ||
   लोकशाही  प्रकृति  तो   मिलनसार  है ,
   लक्ष्य समता  परक  स्नेह -सहकार है |
   सरहदें  बांध   सकती   भला  क्या उसे ,
   विश्व  जिसके  लिए   एक  परिवार है |
   भोग  की  बस्तुओं  में  रमा चित्त जो ,
   वो   अनाचार    का   मूल   आधार  है |
   पूज्य माता-पिता से अधिक पूज्य तो, 
   साम्य सौरभ  भरा प्यार -व्यवहार है |
   जाति  की  वर्ग  की  धर्म   की  कैद से,
   मुक्त  रहता   सदा  न्याय -दरबार है | 
   काव्य    संवेदनाएं   जगाता  " तुका ",
   ध्येय     सर्वोदयी     ज्ञान -संचार  है |
 



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