लोकहित का अलग एक संसार है |
जो चलाता नहीं स्वार्थ तलवार है ||
लोकशाही प्रकृति तो मिलनसार है ,
लक्ष्य समता परक स्नेह -सहकार है |
सरहदें बांध सकती भला क्या उसे ,
विश्व जिसके लिए एक परिवार है |
भोग की बस्तुओं में रमा चित्त जो ,
वो अनाचार का मूल आधार है |
पूज्य माता-पिता से अधिक पूज्य तो,
साम्य सौरभ भरा प्यार -व्यवहार है |
जाति की वर्ग की धर्म की कैद से,
मुक्त रहता सदा न्याय -दरबार है |
काव्य संवेदनाएं जगाता " तुका ",
ध्येय सर्वोदयी ज्ञान -संचार है |
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