Sunday, July 24, 2011

प्रातःकालीन अभिवादन -
फूल-फल बेहद चुकी है स्वार्थ की खेती |
चेत जाओ अब इसे मत खाद-पानी दो ||
लालसाओं की न कोई आखिरी सीमा ,
धारकों को क्या सुरक्षित रख सका बीमा ,
वक्त की आवाज़ को श्रीमान जी सुनिये--
अर्थ अर्जन के समर को कीजिये धीमा |
आचरण से हीन लगती आधुनिक शिक्षा,
आदमीयत से भरे निष्काम प्राणी दो |
हो गए इंसान लाशों भाँति कुछ डरिये,
भेदभावों की कथायें बंद भी करिये,
लूटते तो आ रहे हो हर तरह जन को -
स्वर्ण-चाँदी के घरों को और मत भरिये|

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