Monday, August 15, 2011

मुक्तक

कवि कल्पना के बैंक में खता नहीं रखते ,
इंसानियत के शत्रु से नाता नहीं रखते ,
क्या फ़र्क सत्यासत्य में होता समझते हैं --
कविवृन्द अपने साथ व्याख्याता नहीं रखते|१|
कथरी-दरी के दर्द से सम्बन्ध हैं मेरे,
इस हेतु कविता से हुए अनुबंध हैं मेरे,
मझधार में जो हैं फँसे उनके लिये समझो--
यह गीत मुक्तक छंद तो तटबंध हैं मेरे|2 |

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