Saturday, August 20, 2011

बच्चे बने अभागे

मत देखो इन फटी बिवाई ,लहू बहाते पाँवों को |
अगर देखना है तो देखो,अभ्यंतर के घावों को ||
उपेक्षितों के साथ शक्ति ने,खेल घिनौना खेला|
सदियों से ढ़ोते आये हैं, अपमानों का ठेला||
मसली गयीं सहस्रों कलियाँ,फूँक दिये घर-गाँवों को|
जहाँ कहीं आवाज़ उठ गयी, अन्यायों के आगे |
वहीँ हुई अगणित विधवायें,बच्चे बने अभागे ||
सुविधाओं से परे रहा हूँ , कष्टों में ही सदा पला हूँ |
फिर भी स्नेह-मेघ -सा सबका ,करता रहता सदा भला हूँ||
अन्धकार -अज्ञान राह पर, ज्योति जगाकर चलता आया|
साहस-धैर्य ज्ञान के बल से ,अवरोधों को दलता आया ||
भेद-भाव से विलग  सर्वथा ,न्यायिक सहयोगी पहला हूँ ..
भौतिक इच्छाओं को जीता , परम्परायें ठुकराई हैं |
युग में  मानन-मूल्यों वाली, कर्म-प्रभायें दर्शाई हैं ||
मैं जन-सेवक वृक्ष जगत का,जन हित के ही लिये फला हूँ |

No comments:

Post a Comment