Friday, September 2, 2011

उपहार लिये फिरते

कुछ लोग अकारण ही हथियार लिये फिरते|
दो शब्द छ्प गये क्या अख़बार लिये फिरते||
यह दौर नया आया सहकार बढ़ाने को,
क्यों सातवीं सदी के तकरार लिये फिरते ?
अवरोध कभी कोई पथ के न बने काँटे,
वह जान चुके कवि गण उपचार लिये फिरते|
मझधार फँसे जन को उस पार लगा दे जो,
हम नित्य उसी स्वर की पतवार लिये फिरते|
जिसमें न ज़रा भी है दुर्भाव भरी बदबू ,
दिनरात 'तुका'नय का उपहार लिये फिरते|
 

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