शब्द के पारखी अर्थ से दूर हैं |
इसलिए लोग कमजोर मजबूर हैं|
चेतना के दिये यदि जलेंगे न तो,
ज़ुल्म होने यहाँ रोज़ भरपूर हैं|
बीत सदियाँ गई तम मिटा ही नहीं,
नूर के कौन से आज दस्तूर हैं |
लोग जिनकी बड़ाई किये जा रहे,
वे अदब हीन हैं और मगरूर हैं|
इल्म के दीप जो भी जलाये हुए,
उन सभी के तुकाराम मशकूर हैं|
इसलिए लोग कमजोर मजबूर हैं|
चेतना के दिये यदि जलेंगे न तो,
ज़ुल्म होने यहाँ रोज़ भरपूर हैं|
बीत सदियाँ गई तम मिटा ही नहीं,
नूर के कौन से आज दस्तूर हैं |
लोग जिनकी बड़ाई किये जा रहे,
वे अदब हीन हैं और मगरूर हैं|
इल्म के दीप जो भी जलाये हुए,
उन सभी के तुकाराम मशकूर हैं|
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