अगर चाहते राष्ट्र हो, भ्रष्टाचार विमुक्त|
तो समाज को कीजिये,सदाचार से युक्त||
पोषक भ्रष्टाचार के , होते हैं कानून |
यही चूसते हैं सदा, कमजोरों का खून||
नहीं किसी कानून से,खिले चरित्र प्रसून|
युग नायक गाँधी बने,तोड़ नमक कानून||
जीवन में उनके नहीं, रहता भ्रस्टाचार|
जो चरित्र के हैं धनी, करते शुचि व्यवहार||
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