Saturday, September 24, 2011

पर्वत दर्श

Dr.N.Gopi has wrriten a poem in Telugu title  Nichhalana Chalana
translated in Hindi by Dr. Tukaran Verma for National Symposium of Poets 2000
organised by Prasara Bharati at Bhopal A R IM.P.
पर्वत दर्श मुझे उतना ही है उत्प्रेरण दाता |
जितना सरि के अवलोकन से ह्रदय प्रेरणा पाता||
सरि में गति है पर्वत उसको उत्प्रेरित करता है,
सरि है जीवित काव्य, दूरियाँ जो चित्रित करता है ,
पर्वत ऊषा को धारण कर सांस समय की लेता ,
इस प्रकार वह शांत भाव से मौन प्रेरणा देता |
आस-पास के सब ग्रामों का उचित मंत्रणा दाता|

जब होती है वर्षा गिरि के गर्त ताल बन जाते ,
मोती जैसी बूंदे इसके तब कपोल ढरकाते,
चट्टानों पर इन  कृतियों के सर्ग सहस्र बने हैं|
शिला पीठ पर पड़ोसियों ने मेटे ताप घने हैं ,
शैल पीठ पर पथ सर्पीला सहज फैलता जाता |

चक्कर भरे मार्ग से पूछो गिरि दयालु कितना है,
जीवित यातायात युक्त हो जो जीवंत बना है|
पर्वत इसे उदार ह्रदय से वर प्रदान करता है ,
तदुपरांत स्वयमेव सिमटकर लघु स्वरुप धरता है|
टूटे दर्पण के टुकड़ों में इसका बिम्ब समाता |

मेरे घर की दीवारों पर गेरू धारियाँ आतीं ,
मेरा लहू चूस संध्या की किरणें लाली पातीं|
पर्वत आत्मसात कर उसको मुझे तोष तब देता,
जब कि सांध्य का अंतिम खगदल हार गोल रच लेता|
तभी शैल तरु सदृश ह्रदय से दीर्घ उसाँसे लाता |

अति चीर जीवन कि चक्की में पिसकर गिरि बन पाया,
शालग्राम समान शांत रह यह निश्चल रहता आया |
निर्धनता का गौरवमय जब शुभ्र मुकुट था मेरा ,
आशा के राज्यभिषिक्त का यही बना था डेरा |
मेरे खींचे शिलाक्षरों से बाल्यास्मृति का नाता |

पतझर के पत्तों जैसे उड़ गये सखागण प्यारे,
अचरज है शोणित में अब भी बहती शिला हमारे|
बीज चूमते जब धरती को उनमें अंकुर आते ,
गिरि में प्रकृति जड़ें जिनसे बहु स्वप्न सुमन खिल जाते|
सरिता में लघु-लघु कण बहते शैल कहाँ बह पाता ?

संस्कृति प्रतीक गिरि आदि व्यथा बिखरे बिना पचाता,
इस आश्रय संगीत सरस नित मैं आकर सुन पाता |
अनुभूति मधुर यदि सरि है तो गिरि एकांत मिटाता ,
अपने कोमल स्नेह आवरण बीच मुझे अपनाता |
गिरि मेरा धन चाह घनी गिरि यह पहचान विधाता |
 

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