Monday, September 5, 2011

विश्व हित वरदान है

भारत भुवन में गूँज है नव चेतना अब जागरी,
नित राष्ट्रहित में रत रहे हिंदी सहित लिपि नागरी|
इस स्नेह-सरिता  से प्रवाहित हो रहा अनुरागरी,
देने चली है विश्व को निर्मल सुधारस  गागरी ||
जीवन-सुधा के घाट तक इसने बनायी राह है ,
संकल्प इसका दूर करना हर ह्रदय की आह है|
सब दीन-दुखियों शोषितों की भी इसे परवाह है,
यह चिरयुवा है और युवकों-सा भरा उत्साह है||
अभिव्यक्ति की क्षमता संजोये ज्ञान के भण्डार से ,
ज्यों लिखी जाती पढ़ी त्यों हैं सरल व्यवहार से |
स्वर-वर्ण इसके उच्चरित अपने सुनिश्चित द्वार से,
अपना रही है विश्व को निज त्यागमय आचार से ||
भाषा तथा लिपि तत्त्व का इसमें भरा विज्ञान है,
यह सभ्यता के मूल की लगती प्रथम पहचान है|
सदभावना  का सर्वथा इसने दिया अवदान  है,
श्रुति कंठ मन का मंजु मृदु यह विश्व हित वरदान है||  

No comments:

Post a Comment