Sunday, September 11, 2011

सच समझाओ हे परमेश्वर

सच समझाओ हे परमेश्वर!,क्या सचमुच यह जग प्यारा है ?
इस धरती के हर मानव को, क्या तुमने स्वयं सँवारा है ?

यदि ऐसा है तो क्यों लाखों, आँखों में आँसू आते हैं ?
कचरों के ढेरों में बच्चे , जूठन बटोर क्यों खाते हैं ?
यह सुबह-शाम होने वाला,क्या देख नहीं नजारा है ?
इस धरती के हर मानव को, क्या तुमने स्वयं सँवारा है ?

जिसने कि तुम्हारी रचना को,टुकड़ों-टुकड़ों में बटवाया|
क्यों उसे राज संचालन का, उत्तरदायी है ठहराया ?
अपने बच्चों को मजहब की, क्यों दी आजीवन कारा है?
इस धरती के हर मानव को, क्या तुमने स्वयं सँवारा है ?

तुझसे तेरी संतानों का ,क्यों स्वामी सेवक- सा नाता ?
वे बच्चे हुए भिखारी क्यों, जिनका हो परमपिता दाता?
यह दशा देख कवि क्यों न कहे,अस्तत्व न कहीं तुम्हारा है?
इस धरती के हर मानव को, क्या तुमने स्वयं सँवारा है ?

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