Sunday, September 18, 2011


 



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जब से मुँह पर आई अम्मा |
तब से नहीं भुलाई अम्मा ||
सच को सच कहने से प्यारे,
कहीं नहीं शरमाई अम्मा |
हर मौसम में श्रम करने से,
 कभी नहीं उकताई अम्मा |
इस भू पर जीवन यापन की,
समझी है गहराई अम्मा |
जीवन के इस चौथेपन में,
देती नित्य दिखाई अम्मा |
कवि का कथन याद भी रखना,
जन-मन की शहनाई अम्मा |
'तुकाराम' की इन साँसों में,
स्वर की तरह समाई अम्मा|

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