Wednesday, September 21, 2011

ज्योति-शिखर को

    ज्योति-शिखर को
किसी क्षेत्र से बुद्धि-विवेकी , अगर रौशनी आई |
तभी समझना चेतनता की,लौ न अभी बुझ पाई||

पगडण्डी पर चलने वाले , प्राण नहीं घबराते,
गर्म - धूल शूलों पर नंगे , पैर बढ़ाते जाते |
किसी हाथ ने न्यायनीति की अगर मशाल उठाई|
तभी समझना चेतनता की,लौ न अभी बुझ पाई||

स्वार्थ सिद्धि से सिक्त ज़िन्दगी,होती है शैतानी,
हिलमिलकर जीवन यापन की पद्धति है इंसानी |
किसी ह्रदय ने समरसता की, राह अगर अपनाई|
तभी समझना चेतनता की,लौ न अभी बुझ पाई||

ज्योति-शिखर को अंधकार के यान कहाँ छू पाये,
जो परमार्थ जिए वे निश्चय, परिवर्तन ले आये |
एक शब्द साधक ने भी यदि ,मानवता दिखलाई|
तभी समझना चेतनता की,लौ न अभी बुझ पाई||

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