Friday, August 3, 2012

क्या कहने चतुराई ?
अरे बधाई अरे बधाई अरे बधाई भाई,
क्या कहने चतुराई ......

गाँव-शहर में लोकपाल की डुग्गी थी पिटवाई,
एक मदारी ने दिल्ली में कुछ दिन भीड़ लगाई,
खेल तमाशा दिखा-दिखा के शोहरत रूपी धन को-
राजनीति में निवेश करने की क्या जुगत बनाई|
क्या कहने चतुराई ....
अरे बधाई अरे बधाई अरे बधाई भाई,
क्या कहने चतुराई .......

अब तो जनता देख तमाशा वापिस घर को आई,
अनुभव जब पूछा औरों ने तो बस आँख चुराई,
अंध भक्ति की आशाओं ने जब स्वयमेव विचारा=
तब अपनी अविवेक वृत्ति पर, जीभ नहीं खुल पाई|
क्या कहने चतुराई ?
अरे बधाई अरे बधाई अरे बधाई भाई,
क्या कहने चतुराई .......

राजनीति का खुला अखाड़ा,जिसके कई खिलाड़ी,
इंतजार की लगी  पंक्ति में ,खड़े अनेक जुगाड़ी,
अवसर अच्छा है घुस बैठो ,नहीं गंवाओं इसको- -
कुछ दिन के उपरान्त सही है, बनते दक्ष अनाड़ी|
आज समय है कल मत कहना,क्यों न राह दिखाई ?
क्या कहने चतुराई ?
अरे बधाई अरे बधाई अरे बधाई भाई,
क्या कहने चतुराई .......

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