Sunday, August 19, 2012

एक ओर है हर्ष ईद ....

एक ओर है हर्ष ईद का,एक ओर विध्वसं|
सहेगी जनता कितने दंश?
सहेगी जनता कितने दंश?

सावन के अंधे को दिखती, दुनिया धानी-धानी |
कुछ घर सिवईं सरस बिरयानी,कुछ को मिले न पानी|
पलक झपकते हुए दर बदर,यहाँ सहस्रों वंश|
सहेगी जनता कितने दंश?

सहेगी जनता कितने दंश?

अफवाहों की आग लगी है,बंधु भरोसा टूटा|
अपनों ने अपनों को कैसा,लूटा पीटा कूटा||
राजनीति के कारण रिपु-सा,दिखे अंश को अंश|
सहेगी जनता कितने दंश?
सहेगी जनता कितने दंश?

लोकतंत्र में राजतन्त्र -सा,छली आचरण दिखता|
जिसने थामी न्याय लेखनी,वह भी सत्य न लिखता||
किसको समझें बाज़ जंगली,किसको समझें हंस?
सहेगी जनता कितने दंश?
सहेगी जनता कितने दंश?

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