एक गीत "शब्द -शक्ति "
अपने आप ह्रदय पीड़ा को, आँखों ने बतलाया है|
अनुभव कहता अर्थतंत्र ने, सबको सदा सताया है||
बहुत क्रूर होती है सत्ता,उसे तर्क से क्या लेना|
जो विरोध करता शासन का,उसे मसलती है सेना||
न्याय पालिका आभूषण है,किसने न्याय निभाया है?
अनुभव कहता अर्थतंत्र ने, सबको सदा सताया है||
स्वर्ग-नर्क लालच भय वाले,सत्ता हेतु खिलौने हैं|
ये शासक की जय-जय करते,होते बहुत घिनौने हैं||
पुरोहितों ने कुछ जाने-अनजाने सत्य छिपाया है |
अनुभव कहता अर्थतंत्र ने, सबको सदा सताया है||
सत्यपथी सद्धर्म विवेकी, जुड़ न व्यवस्था से पाते|
प्राणदान के बाद यही तो, ईश्वर कहलाये जाते ||
भोले-भालों ने इन सबको, निज आदर्श बनाया है|
अनुभव कहता अर्थतंत्र ने, सबको सदा सताया है||
कवि तो शब्द-शक्ति के बल से,नवयुग बोध कराते हैं|
जन गण मन की विपदाओं का,निराकरण समझाते हैं||
विविध चारणों ने अनादि से,नृप का ढोल बजाया है|
अनुभव कहता अर्थतंत्र ने, सबको सदा सताया है||
अपने आप ह्रदय पीड़ा को, आँखों ने बतलाया है|
अनुभव कहता अर्थतंत्र ने, सबको सदा सताया है||
बहुत क्रूर होती है सत्ता,उसे तर्क से क्या लेना|
जो विरोध करता शासन का,उसे मसलती है सेना||
न्याय पालिका आभूषण है,किसने न्याय निभाया है?
अनुभव कहता अर्थतंत्र ने, सबको सदा सताया है||
स्वर्ग-नर्क लालच भय वाले,सत्ता हेतु खिलौने हैं|
ये शासक की जय-जय करते,होते बहुत घिनौने हैं||
पुरोहितों ने कुछ जाने-अनजाने सत्य छिपाया है |
अनुभव कहता अर्थतंत्र ने, सबको सदा सताया है||
सत्यपथी सद्धर्म विवेकी, जुड़ न व्यवस्था से पाते|
प्राणदान के बाद यही तो, ईश्वर कहलाये जाते ||
भोले-भालों ने इन सबको, निज आदर्श बनाया है|
अनुभव कहता अर्थतंत्र ने, सबको सदा सताया है||
कवि तो शब्द-शक्ति के बल से,नवयुग बोध कराते हैं|
जन गण मन की विपदाओं का,निराकरण समझाते हैं||
विविध चारणों ने अनादि से,नृप का ढोल बजाया है|
अनुभव कहता अर्थतंत्र ने, सबको सदा सताया है||
No comments:
Post a Comment