Friday, August 24, 2012

कहने को मजबूर किया है,सतरंगी तस्वीर ने|
जकड़-जकड़ जनता को बाँधा,जड़ता की ज़ंजीर ने||

नहीं किसी को आज़ादी का, वातावरण मिला|
सदा सत्य कहने वाले से, शासन करे गिला||
मर-मर करके यहाँ जिया है,उमर दराज़ फकीर ने| 
जकड़-जकड़ जनता को बाँधा,जड़ता की ज़ंजीर ने||

किया परिश्रम नहीं जिन्होंने,उनका बाग खिला| 
जिन फूलों ने शूल न झेले, उनको मान मिला||

निबल जनों की नग्न पीठ ही,भेदी धार्मिक तीर ने|
जकड़-जकड़ जनता को बाँधा,जड़ता की ज़जीर ने||

लोकतंत्र भी राजतंत्र सी, चालें छली चले|
पैंसठ वर्षों बाद न्याय के,कुम्भ न कहीं ढले||
सींचे अभी न सूखे उपवन, समरसता के नीर ने |
जकड़-जकड़ जनता को बाँधा,जड़ता की ज़ंजीर ने||

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