Monday, August 6, 2012

दुनिया भर पर हँसने वालों,अपने को भी देखो|
अपनी आँखों से दुखियो के,सपने को भी देखो||

अपने लिए जुटा लेते हैं, सुख सुविधायें जो भी,
जन सेवा के दायित्वों से, बंधे हुए हैं वो भी |
क्वार धूप में नग्न वदन के,तपने को भी देखो|
अपनी आँखों से दुखियो के,सपने को भी देखो||

ढांक नहीं सकते मत ढांको,किन्तु न लाज उघारो,
ये अमीर क्यों,वे गरीब क्यों,इस पर स्वतः विचारो|
जिसके द्वारा नाप रहे उस,नपने को भी देखो|
अपनी आँखों से औरों के, सपने को भी देखो||

कितनी भी हो शक्ति वदन में,फिर भी तो वह थकता,
शिक्षा बिना समाज कभी भी,प्रगति नहीं कर सकता|
सीढ़ी चढ़ते लघु पैरों के, कपने को भी देखो|
अपनी आँखों से औरों के, सपने को भी देखो||

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