Thursday, February 14, 2013



बहुत हो चुकी है मनमानी, सावधान हो जाओ|
नागरिकों से किया गया जो,वो अनुबंध निभाओ||

मिथ्याचार तुम्हारा तुमको, घुन बनकर खा जायेगा,
टिक न सकेगा कदाचार वो, जो सच से टकरायेगा|
न्यायोचित उदघोष यही है, नैतिकता अपनाओ|
नागरिकों से किया गया जो,वो अनुबंध निभाओ||

क्षुद्र विसंगतियाँ समाज में, भुजबलियों ने फैलायी,
कमजोरों की चार रोटियाँ, धनपशुओं ने छिनवायी |
खींचतान की छिड़ी जंग है,शान्ति सलिल बरसाओ|
नागरिकों से किया गया जो,वो अनुबंध निभाओ||

कवियों का सद्धर्म प्रथम है, सामाजिक पीड़ा गाना,
अगर न अन्यायी माने तो, सत्याग्रह पर डट जाना|
संविधान के पहरेदारों, लोक ध्वजा फहराओ|
नागरिकों से किया गया जो,वो अनुबंध निभाओ||

भूख मिटेगी प्यास बुझेगी, सिर ढँकने को छत होगी,
सबको सुलभ रहेगी शिक्षा, सभी स्वस्थ्य होंगे रोगी|
अब अपने इस नारे को तो, साकारित करवाओ|
नागरिकों से किया गया जो,वो अनुबंध निभाओ||

Tuesday, February 12, 2013

अंकुर फूट रहे नफ़रत के, गाँव- शहर वीराने में|
चैन चाहिये चलो साथियों, प्रेम भरे मयखाने में||

यहाँ सभी सबको दुत्कारें, वहाँ सभी को सभी दुलारें,
अनजानों को स्नेह भाव से, भैया- भैया कहें पुकारें|
मधुपायी को देर न लगती, रिपुओं को अपनाने में| 
चैन चाहिये चलो साथियों, प्रेम भरे मयखाने में||

यहाँ चैन की साँस न आये, वहाँ ह्रदय आनंद मनाये,
चार पलों का दृश्य सुहाना, इन आँखों से निकल न पाये|
अपनापन ज्यों वहाँ मिले त्यों, मिले न और ठिकानों में|
चैन चाहिये चलो साथियों, प्रेम भरे मयखाने में||

वहाँ सभी मिल खाते- पीते, एक दूसरे के हित जीते,
भेद भाव से दूर सर्वथा, सबका समय स्नेह से बीते|
मधुर पान की ममता छलके, प्यालों के टकराने में|
चैन चाहिये चलो साथियों, प्रेम भरे मयखाने में||

वहाँ कहें वे और लीजिये, पियो मौज से मौज कीजिये,
मुझे देखकर कहा एक ने, तुकाराम दो घूँट पीजिये|
गरल नहीं यह अमियपान है, क्या रक्खा शर्माने में?
चैन चाहिये चलो साथियों, प्रेम भरे मयखाने में||

Thursday, February 7, 2013

हमने देखी बड़े-बड़ों के,उर की वह तस्वीर|
न जिसमें परहित किंचित पीर|| 
न जिसमें परहित किंचित पीर|||

कई मील से जिन भवनों की, सूरत दिखे चमकती|
उनके अंदर मानवता की, चाह न अल्प झलकती||
अपने और परायेपन की, वे तो बने नजीर| 
न जिसमें परहित किंचित पीर|| 
न जिसमें परहित किंचित पीर|||

जितना भारत का आँगन है, प्रिय उदार मधुमासी|
उतना इसके निवासियों का, जीवन भोग विलासी||
अनाचार ने अर्जित की है,वह कुत्सित जागीर| 
न जिसमें परहित किंचित पीर|| 
न जिसमें परहित किंचित पीर||| 

लोकतंत्रीय जीवन पद्धिति, इनको नहीं सुहाती|
संविधान के परिपालन में, इनकी फटती छाती||
कदाचार ने पहनाया है, ऐसा ठगुआ चीर|
न जिसमें परहित किंचित पीर||
न जिसमें परहित किंचित पीर|||
एक गीत सर्जनात्मक विश्वास:-

'भा' का अर्थ भव्य प्रतिभा है, रत अविरल अभ्यास|
यही है सर्जक का विश्वास||
यही है सर्जक का विश्वास|||

ज्ञानार्जन के लिए साधना, मानवीयता की उपासना,
विश्व हितैषी सद्विचार से, व्यक्त करें शुचि मनोभावना|
कवि परमार्थ उपायों द्वारा, दल सकते संत्रास|
यही है सर्जक का विश्वास||
यही है सर्जक का विश्वास||| 

लोभ लालसा को विसारना, सर्वोदय चिंतन उभारना,
सदुपदेश देने से पहले, कथनी-करनी पर विचारना|
विषम परिस्थितियों में होना, किंचित नहीं निराश|
यही है सर्जक का विश्वास||
यही है सर्जक का विश्वास|||

चित्त-वृत्ति शैली सँवारना, भूल-चूक अपनी सुधारना,
बुद्धि विवेक मुक्त बंधन से, अंतर की शुचिता पसारना|
युग प्रबोध के हित अर्पित है, जीवन -काव्य -प्रकाश|
यही है सर्जक का विश्वास||
यही है सर्जक का विश्वास|||

Monday, February 4, 2013


बिना संकोच दो पल वे चले जाते सताते हैं|
किसी के याद में सपने घने आते सताते है||

सुनाऊ दर्द की ज्वाला बताओ कौन समझेगा,
यहाँ के लोग वैभव की कथा गाते सताते हैं|

हमेशा पास जो रहते जिन्होंने दोस्त माना वे,
व्यवस्था से प्रताड़ित मित्र के नाते सताते है| 

गरीबी की महामारी किये है चुप गरीबों को ,
मगर धनवान को भी बैंक के खाते सताते हैं|

जिन्हें सूरत किसी की खींच अपनी ओर लेती हो,
उन्हें सीरत नहीं बस अंग प्रिय भाते सताते हैं|

कभी नजदीक आने के लिए जो यत्न करते थे,
सुना है वे 'तुका' को आँख दिखलाते सताते हैं|
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एक घनाक्षरी छंद ,
विश्व में जहाँ कहीं हों उग्रवादियों के ठौर ,
   शांति हेतु उनकी तबाही होनी चाहिए |
मौत के गिरोहों के विरुद्ध न्याय केंद्र बीच,
   बेहिचक खुलके गवाही होनी चाहिए ||
राष्ट्र के हितार्थ स्वार्थभाव को बिसार नित्य ,
   वीर बाँकुरों की वाह-वाही  होनी चाहिए |
जातिवाद-वर्गवाद-क्षेत्र-संप्रदाय हीन ,
   न्याय,नीति,युक्त लोकशाही होनी चाहिए ||
किसी का नाम ऊँचा है किसी का काम ऊँचा है| 
नहीं जो बिक रहा उसका लग रहा दाम ऊँचा है|

न कोई खास ऊँचा है न कोई आम ऊँचा है,
अगर ऊँचा यहाँ कोई महज बदनाम ऊँचा है| 

अज़ब संसार है इसमें यही संग्राम ऊँचा है,
कहीं पर राम ऊँचा है कहीं पर श्याम ऊँचा है|

जरा-सी जब मिले फुर्सत इसे भी गौर से गुनिए, 
किसी का दर्द जो हरता वही पैगाम ऊँचा है|

यहाँ तो मार्ग लोगों ने बनाये सैकड़ों उनमें,
खुला है जो उपेक्षित को वही आयाम ऊँचा है|

उठाकर शीश क्या उसको 'तुका' देखा किसे ने भी,
पहुँच से दूर वो सब के अनोखा धाम ऊँचा है|