बहुत हो चुकी है मनमानी, सावधान हो जाओ|
नागरिकों से किया गया जो,वो अनुबंध निभाओ||
मिथ्याचार तुम्हारा तुमको, घुन बनकर खा जायेगा,
टिक न सकेगा कदाचार वो, जो सच से टकरायेगा|
न्यायोचित उदघोष यही है, नैतिकता अपनाओ|
नागरिकों से किया गया जो,वो अनुबंध निभाओ||
क्षुद्र विसंगतियाँ समाज में, भुजबलियों ने फैलायी,
कमजोरों की चार रोटियाँ, धनपशुओं ने छिनवायी |
खींचतान की छिड़ी जंग है,शान्ति सलिल बरसाओ|
नागरिकों से किया गया जो,वो अनुबंध निभाओ||
कवियों का सद्धर्म प्रथम है, सामाजिक पीड़ा गाना,
अगर न अन्यायी माने तो, सत्याग्रह पर डट जाना|
संविधान के पहरेदारों, लोक ध्वजा फहराओ|
नागरिकों से किया गया जो,वो अनुबंध निभाओ||
भूख मिटेगी प्यास बुझेगी, सिर ढँकने को छत होगी,
सबको सुलभ रहेगी शिक्षा, सभी स्वस्थ्य होंगे रोगी|
अब अपने इस नारे को तो, साकारित करवाओ|
नागरिकों से किया गया जो,वो अनुबंध निभाओ||
No comments:
Post a Comment