Wednesday, February 27, 2013



झूमने का कुछ मजा है,
घूमने का और|
चैन लेने के लिए है,
अब कहाँ पर ठौर?

सुमनों लताओं में नहीं सद्गंध है,
ताज़ी हवाओं पर लगा प्रतिबन्ध है,
पूछती हैं घाटियां मैदान पर्वत-
कितना हमारा आपका सम्बन्ध है|
कह रही पगडंडियाँ है,
राजपथ का दौर|
चैन लेने के लिए है,
अब कहाँ पर ठौर?

खिलती हुई सरसों न दिखती खेत में,
कुछ भी चहलक़दमी न सरि की रेत में,
अब तो किनारे पर तपस्वी हैं नहीं-
अंतर किया जाता न श्यामल श्वेत में|
आम वृक्षों में न आते,
वक्त पर भी बौर|
चैन लेने के लिए है,
अब कहाँ पर ठौर?

चुपचाप कौने में विलखती साधना,
शुचि प्रार्थना ऊपर प्रभावी याचना,
ठग के करों में शक्ति संचित हो गयी-
दुर्भावना को पूजती सद्भावना|
भूख के मुँह से छिनाया,
जा रहा है कौर|
चैन लेने के लिए है,
अब कहाँ पर ठौर?7

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