लोकहित के लिए कौन सरकार है ?
लक्ष्य जिसका नहीं अर्थ व्यापार है||
आदमी चेतना बोध से जो भरा,
छोड़ सकता नहीं वो सदाचार है|
भोग की वस्तुओं में रमा चित्त जो,
वो अनाचार का मूल आधार है |
पूज्य माता-पिता की तरह पूज्य ही,
साम्य-सौरभ भरा प्रेम व्यवहार है|
जाति की वर्ग की धर्म की कैद से,
चाहता मुक्ति अब न्याय दरबार है|
काव्य संवेदनायें जगाता 'तुका',
ध्येय सर्वोदयी ज्ञान- संचार है |
लक्ष्य जिसका नहीं अर्थ व्यापार है||
आदमी चेतना बोध से जो भरा,
छोड़ सकता नहीं वो सदाचार है|
भोग की वस्तुओं में रमा चित्त जो,
वो अनाचार का मूल आधार है |
पूज्य माता-पिता की तरह पूज्य ही,
साम्य-सौरभ भरा प्रेम व्यवहार है|
जाति की वर्ग की धर्म की कैद से,
चाहता मुक्ति अब न्याय दरबार है|
काव्य संवेदनायें जगाता 'तुका',
ध्येय सर्वोदयी ज्ञान- संचार है |
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