Wednesday, March 27, 2013

एक मंथन गीत:-

शब्द-जाल है यति है गति है, पर उसमे सदभाव कहाँ?
काव्य-धर्म पालन करने का, चला गया प्रस्ताव कहाँ?

कौन जानता नहीं अर्थ का, अंतर अम्बल होता है,
पर सदियों के हेतु काव्य तो, जीवन-संबल होता है|
शब्द- शक्ति संवर्धन वाणी, रखती है अलगाव कहाँ?
काव्य-धर्म पालन करने का, चला गया प्रस्ताव कहाँ?

जब तक लिखो-पढ़ोगे मित्रो!, पूर्वाग्रह के ग्रंथों को,
तब तक नहीं बना सकते हो, मानवता के पंथों को|
बँटवारे का लेखन सोचो, कम कर सका तनाव कहाँ?
काव्य-धर्म पालन करने का, चला गया प्रस्ताव कहाँ?

वक्त कह रहा जग मानव को, मानव-सा अपनाओ भी,
नैसर्गिक सुषमा की रक्षा, करने को डट जाओ भी |
कवि के मन में किसी तरह का,घर कर सका दुराव कहाँ? 
काव्य-धर्म पालन करने का, चला गया प्रस्ताव कहाँ?

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