समय की ग़ज़ल गुनगुनानी पड़ी है,
नयी रौशनी आजमानी पड़ी है |
कही बात जो वो निभानी पड़ी है
भलों को मुसीबत उठानी पड़ी है|
जिसे नित्य अनुभूतियों से संजोया,
वही जिंदगानी सुनानी पड़ी है|
जिन्होंने ठगों को नहीं संत माना,
उन्हें पूर्ण कीमत चुकानी पड़ी है|
सदा शब्द की साधना हेतु कवि को ,
गरीबी गले से लगानी पड़ी है|
जिन्हें कीच के बीच फेका अकेला,
उन्हें राह अपनी बनानी पड़ी है |
सभी के लिए जो सदा काम आये,
'तुका' फस्ल ऐसी उगानी पड़ी है|
नयी रौशनी आजमानी पड़ी है |
कही बात जो वो निभानी पड़ी है
भलों को मुसीबत उठानी पड़ी है|
जिसे नित्य अनुभूतियों से संजोया,
वही जिंदगानी सुनानी पड़ी है|
जिन्होंने ठगों को नहीं संत माना,
उन्हें पूर्ण कीमत चुकानी पड़ी है|
सदा शब्द की साधना हेतु कवि को ,
गरीबी गले से लगानी पड़ी है|
जिन्हें कीच के बीच फेका अकेला,
उन्हें राह अपनी बनानी पड़ी है |
सभी के लिए जो सदा काम आये,
'तुका' फस्ल ऐसी उगानी पड़ी है|
No comments:
Post a Comment