Sunday, March 24, 2013

घिनौनी सोच से अक्सर मनाना चाहते होली|
सुना है सरहदों ऊपर मनाना चाहते होली||

मिलावटखोर हिलमिलकर मनाना चाहते होली,
गरल को बेचकर विषधर मनाना चाहते होली|

दरिंदे राजनैतिक हस्तियों की चौधराहट में,
गिराकर धर्म के पत्थर मनाना चाहते होली |

कुचलते आ रहे हैं मानवीयत जो युगों से वे,
पकड़कर न्याय का कालर मनाना चाहते होली|

उन्हें साम्राज्य वैभव का बढ़ाना है बढ़ाना है,
जलाकर घाष वाले घर मनाना चाहते होली|

तुम्हें उनसे सजग रहना यहाँ होगा हमेशा जो,
छिपाकर बाह में खंजर मनाना चाहते होली|

सराहा जा नहीं सकता 'तुका' ऐसे इरादे को,
दिलों के बीच हो अंतर मनाना चाहते होली|

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