Wednesday, May 29, 2013

धोखा देने वाले बोलो, कितने धोखे दोगे|
कितना और गिरोगे आखिर, कितना और गिरोगे?

आदिकाल से राजतन्त्र ने, प्यार किया शैतान को|
अनदेखी विपदा के भय से, पूजा है अज्ञान को||
ठग आरे से हरिश्चन्द्र-सा, कितना और चिरोगे? 
कितना और गिरोगे आखिर, कितना और गिरोगे?

जय-जयकार किया करते जो, समझो उन्हें न मित्र हैं|
चाटुकारियों के कोई भी, होते नहीं चरित्र हैं||
लगुओ-भगुओं के घेरे में , कितना और घिरोगे?
कितना और गिरोगे आखिर, कितना और गिरोगे?

गाँव-नगर की गलियों-गलियों, चौराहों बाजार में|
भूखी-प्यासी जनता राहें, रोक रही प्रतिकार में||
सोचो छिपने हेतु फिरोगे, कितना और फिरोगे?
कितना और गिरोगे आखिर, कितना और गिरोगे?

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