Friday, May 31, 2013

अब अशेष सासें कर दी हैं, कविता को कुर्बान|
हमारी बस इतनी पहचान||
हमारी बस इतनी पहचान|||

काव्य-कर्म की महिमा गाना, शब्दों का भण्डार बढ़ाना,
साहित्यिक -अनुशासन द्वारा, जीवन का उद्देश्य बताना|
इन्सानों की जटिल ज़िन्दगी, करनी है आसान| 
हमारी बस इतनी पहचान||
हमारी बस इतनी पहचान|||

पीड़ित की आवाज़ उठाना, सुप्त चेतना शक्ति जगाना,
वर्तमान को सजा-धजा के, कुछ भविष्य संपन्न बनाना| 
नैतिक मूल्यों के प्रसार का, थाम लिया अभियान|
हमारी बस इतनी पहचान||
हमारी बस इतनी पहचान||| 

पंचशील का स्वस्थ करीना, लोकतांत्रिक जीवन जीना,
उसको मुख्य धार में लायें, जिसे ज्ञात बस खाना -पीना|
करें लोकशाही विचार का, प्रिय! आदान -प्रदान| 
हमारी बस इतनी पहचान||
हमारी बस इतनी पहचान|||

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