कवि ने लिखी सुनायी सबको, महिमा परिवर्तन की|
जिसके कारण आज बज रही, मुरली जन वन्दन की||
एक समय था जब इंसा को, नहीं सुलभ थी रोटी,
और अकारण दूर- दूर थी, लम्बी दाढ़ी- चोटी|
इन हालातों में बिखेर दी, सरस महक चन्दन की|
जिसके कारण आज बज रही, मुरली जन वन्दन की||
युग प्रबोध के गीत छंद से, सुप्त चेतना जागी,
लोकतंत्र ने बना दिया है, अंतर मन अनुरागी|
अब पैरों में नहीं किसी ने, साँकल जड़ बंधन की|
जिसके कारण आज बज रही, मुरली जन वन्दन की||
अधिकारों की बात हो रही, नारी की आज़ादी,
वृद्धों को सम्मान मिल रहा, खुश हैं दादा-दादी |
खड़ी प्रतीक्षारत स्वागत में, प्रतिभा संवर्धन की|
जिसके कारण आज बज रही, मुरली जन वन्दन की||
युवक युवतियों के हाथों ने, ले ली प्रगति मशालें,
हारे- थके बोझे के मारे, जो हैं उन्हें सँभालें|
संविधान की गौरव गाथा, जय मानव दर्शन की|
जिसके कारण आज बज रही, मुरली जन वन्दन की||
जिसके कारण आज बज रही, मुरली जन वन्दन की||
एक समय था जब इंसा को, नहीं सुलभ थी रोटी,
और अकारण दूर- दूर थी, लम्बी दाढ़ी- चोटी|
इन हालातों में बिखेर दी, सरस महक चन्दन की|
जिसके कारण आज बज रही, मुरली जन वन्दन की||
युग प्रबोध के गीत छंद से, सुप्त चेतना जागी,
लोकतंत्र ने बना दिया है, अंतर मन अनुरागी|
अब पैरों में नहीं किसी ने, साँकल जड़ बंधन की|
जिसके कारण आज बज रही, मुरली जन वन्दन की||
अधिकारों की बात हो रही, नारी की आज़ादी,
वृद्धों को सम्मान मिल रहा, खुश हैं दादा-दादी |
खड़ी प्रतीक्षारत स्वागत में, प्रतिभा संवर्धन की|
जिसके कारण आज बज रही, मुरली जन वन्दन की||
युवक युवतियों के हाथों ने, ले ली प्रगति मशालें,
हारे- थके बोझे के मारे, जो हैं उन्हें सँभालें|
संविधान की गौरव गाथा, जय मानव दर्शन की|
जिसके कारण आज बज रही, मुरली जन वन्दन की||
No comments:
Post a Comment