Friday, July 12, 2013

कहानी हो किसी की

नहीं सम्बन्ध रखते जो भले इन्सान से,
सुनाते कातिलानी भूमिका वे शान से|

ठगों की आदतें जाती नहीं गुणगान से, 
सही पहचान होती है नहीं परिधान से|

कभी सत्ता मिले शायद उन्हें भी देश की,
मिलेंगे लेखकों को तोहफे अनुदान से|

उन्हीं के हाथ से स्वीकार के उपहार को, 
खड़े हरदम रहेंगे साथ में जी जान से|

समझना चाहिये इन्सान को इतना सदा,
भला होता किसी का भी नहीं शैतान से|

इसी में तोष मिलता है यही चाहत रही, 
महज दो रोटियाँ मिलती रहें सम्मान से|

कहानी हो किसी की भी किसी दौरान की,
उसे समझा 'तुका' ने तर्क से विज्ञान से|

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