नहीं सम्बन्ध रखते जो भले इन्सान से,
सुनाते कातिलानी भूमिका वे शान से|
ठगों की आदतें जाती नहीं गुणगान से,
सही पहचान होती है नहीं परिधान से|
कभी सत्ता मिले शायद उन्हें भी देश की,
मिलेंगे लेखकों को तोहफे अनुदान से|
उन्हीं के हाथ से स्वीकार के उपहार को,
खड़े हरदम रहेंगे साथ में जी जान से|
समझना चाहिये इन्सान को इतना सदा,
भला होता किसी का भी नहीं शैतान से|
इसी में तोष मिलता है यही चाहत रही,
महज दो रोटियाँ मिलती रहें सम्मान से|
कहानी हो किसी की भी किसी दौरान की,
उसे समझा 'तुका' ने तर्क से विज्ञान से|
सुनाते कातिलानी भूमिका वे शान से|
ठगों की आदतें जाती नहीं गुणगान से,
सही पहचान होती है नहीं परिधान से|
कभी सत्ता मिले शायद उन्हें भी देश की,
मिलेंगे लेखकों को तोहफे अनुदान से|
उन्हीं के हाथ से स्वीकार के उपहार को,
खड़े हरदम रहेंगे साथ में जी जान से|
समझना चाहिये इन्सान को इतना सदा,
भला होता किसी का भी नहीं शैतान से|
इसी में तोष मिलता है यही चाहत रही,
महज दो रोटियाँ मिलती रहें सम्मान से|
कहानी हो किसी की भी किसी दौरान की,
उसे समझा 'तुका' ने तर्क से विज्ञान से|
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