Sunday, July 14, 2013

पंचशील का बाग

किसी क्षेत्र में राष्ट्र प्रेम की, महक न मंदिम पड़ पाये|
मिला स्नेह सहकार वृक्ष जो, जड़ उसकी न उखड़ पाये||

मान रहा हूँ स्वार्थवृत्ति का, रोग निरन्तर फैल रहा|
रोकथाम करने को कब से, हटा मानसिक मैल रहा|
दिया सरहदों ऊपर पहरा, अरिदल अब न उमड़ पाये|
मिला स्नेह सहकार वृक्ष जो, जड़ उसकी न उखड़ पाये||

काव्यशक्ति से नागरिकों को, युग प्रबोध संगीत दिया,
सत्य- असत्य परखने वाला, पारख सूत्र प्रणीत किया|
प्रगतिशील जीवन हों अपने, जड़ता नहीं जकड़ पाये|
मिला स्नेह सहकारवृक्ष जो, जड़ उसकी न उखड़ पाये||

लोकहितैषी उद्योगों को, भलीभाँति विकसित कर लें,
जिन क्षेत्रों में पीछे उनके, कारण अन्वेषित कर लें|
पंचशील का बाग सुहाना, फिरसे नहीं उजड़ पाये|
मिला स्नेह सहकार वृक्ष जो, जड़ उसकी न उखड़ पाये||

विश्व शान्ति के हेतु हमारा, संविधान उद्घोषक है,
बुद्धि विवेक तर्क विज्ञानी, राह चुनी सहयोजक है|
संचित शक्ति करें अब इतनी, कोई कर न पकड़ पाये|
मिला स्नेह सहकार वृक्ष जो, जड़ उसकी न उखड़ पाये||

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