Wednesday, July 24, 2013

शाश्वत राग

पतझर ने उजाड़ डाला है, जीवन बाग हमारा|
एकाकी ही गूंज रहा है, शाश्वत राग हमारा||

कालचक्र की इच्छायें तो, हुई न कभी पता,
लेकिन शीत ग्रीष्म वर्षा में, सदा रहा चलता|
अनुभव की आवाज़ हो गया, पावन त्याग हमारा|
एकाकी ही गूंज रहा है, शाश्वत राग हमारा||

जब से होश सँवाला तब से, परहित लगा रहा,
थका तभी सैया पर पहुँचा, फिरभी जगा रहा |
वो भी छीन लिया ठगुओं ने, जो था भाग हमारा|
एकाकी ही गूंज रहा है, शाश्वत राग हमारा||

इसे न समझा बैरी उसको, कभी न मित्र कहा,
समता परक स्वभाव सभी के, लिए पवित्र रहा| 
प्राणवायु सा जगहित बहता, उर अनुराग हमारा|
एकाकी ही गूंज रहा है, शाश्वत राग हमारा||

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