Wednesday, July 3, 2013

राजधानी

नशेबाज-सी सो रही राजधानी,
कदाचार को ढो रही राजधानी| 

डकैती बकैती लठैती प्रभावी,
अनाचार से रो रही राजधानी|

कहीं नीर निर्मल दिखाई न देता, 
वदन कीच से धो रही राजधानी| 

व्यवस्था हुई चम्बली आज देखो,
डवांडोल कुछ हो रही राजधानी|

विषैले फलों को उगाती रहे जो, 
वही बीज तो बो रही राजधानी|

मचा राजनैतिक घमासान ऐसा,
'तुका' धैर्य को खो रही राजधानी|

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