Sunday, October 9, 2011

अभी तक यह निश्चित नहीं हो सका है कि यह आन्दोलन भ्रस्टाचार के मूल को उन्मूल करने के लिये खड़ा किया गया है अथवा सरकार के विरोध के लिये,और लोकतान्त्रिक संवैधानिक व्यवस्था को कमजोर करने के लिये, कांग्रेस को वोट मत दो, यह मुहिम क्या साबित करती है और किसे वोट दो, इस पर मौन रहना किस चतुराई को प्रदर्शित कर रही है, संघ प्रमुख का वक्तव्य और सिविल सोशायटी के विचार में क्या कोई तालमेल दिख रहा है, क्या संघ प्रमुख से अधिक विश्वसनीय सिविल सोशायटी के सदस्य, आर.एस.एस. के कार्यकर्ताओं की दृष्टि में हो सकते है?  सिविल सोशायटी के सदस्य स्वघोषित दूध के धुले हैं और पूरी कांग्रेस पार्टी उनकी दृष्टि में साफसुथरी नहीं है ऐसी भावना से अनुप्रेरित क्या कोई गैरराजनैतिक संगठन हो सकता है? और क्या यह संगठन किसी राजनैतिक पार्टी को ईमानदार भावना से अनुप्रेरित मानता है, जब की एन.जी.ओ. का समर्थन कर रहा, पूंजीपतियों के हितवर्धक के रूप में सामने आया है , जिस संगठन ने अपने जन्म के समय ही भारतीय सामजिक और संवैधानिक व्यवस्था का किंचित मात्र भी ध्यान नहीं रखा उसे  
सम्पूर्ण नागरिकों का प्रतिनिधि कैसे माना सकता है?

किसी लोकपाल बिल की तुलना में भारतीय संविधान को रखना किंचित मात्र भी न्यायिक नहीं है, तुलना दो समान प्रकृतियों धर्म और गुणों  के साथ की जाती है  और जो लोग ऐसा कर रहे हैं उन्हें स्वयमेव एक बार मुक्त मन से यह सोचना चाहिए क्या वह भारत में दो समानांतर सत्तायें और व्यवस्थायें चाहते हैं ?
भारतीय संविधान के दायरे में संचालित संस्थायें हर प्रकार के भ्रस्टाचार को उन्मूलित करने हेतु सक्षम हैं किसी भी प्रकार के लोकपाल की आवश्यकता नहीं है , वर्तमान में एक से बढ़कर एक शक्तिशालियों को प्रभावशालियों को राजनीतिज्ञों को और अधिकरियों को इसी व्यवस्था के अंतर्गत सजा दी जा रही अथवा प्रक्रिया प्रारम्भ की गई है| आवश्यकता है केवल सदाचरण की जो किसी कानून से नहीं अपितु पारिवारिक सामाजिक सोच से विकसित हो सकती है| कानून की जटिलता से भय उत्पन्न होता है, जो अंततः भ्रस्टाचार को बढ़ाता है| वर्तमान में भी भ्रस्टाचार के बढ़ने में कानूनी जकड़ने ही अधिक जुम्मेदार हैं| भय लोकतंत्र विरोधी हैं, निर्भयता लोकतंत्र पोषक| 

कानून सामान्यतः आने वाली पीढ़ियों को ध्यान में रखकर बनाए जाते हैं और में एक अध्यापक के रूप में, एक विचारक के रूप में एक कवि के रूप में अपने ६४ वर्षीय अर्जित अनुभव के आधार पर यह कह सकता हूँ कि जो कोई भी अपने आप को ईमानदार घोषित कर रहा है वह इस देश के छोटे-छोटे बच्चों कि तुलना में  कम ईमानदार है| हम इन बच्चों को ईमानदार बना रहने दें यही बहुत बड़ा उपकार होगा इन्हें जितने क़ानूनी फेर में डालेंगे यह उतने ही पराधीनता  की और जायेंगे|    

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